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Motivational Story: कोई तुमसे बात क्यूँ करेगा?

Motivational Story: कोई तुमसे बात क्यूँ करेगा?

Motivational Story: कोई तुमसे बात क्यूँ करेगा?

नई दिल्ली | 19 दिसम्बर: एक दिन हुआ यूं की मैं अपने ऑफिस में बैठी थी, और मेरे एक कलीग, जिसको लगभग एक साल पूरे होने वाले है, उसने बोला की कोई मुझसे बात नहीं करता। उसका कहना था की जितने भी लोग यहा से किसी और संस्था मे गए है, उन्मे से कोई उससे बात नहीं करता।

चलो, कहानी को आसान बनाने के लिए उस वयक्ति को एक नाम दे देते है। तो मेरे उस कलीग का नाम था खुशी। वैसे तो वो मुझसे सीनियर थी, पर कभी-कभी उसकी बातें और हरकतें ऐसी थी की अगर आप उससे बात भी करना चाहो तो वो पहले एक टक निहारती थी फिर बात तो ऐसे करती थी जैसे मानो जजमेंट दे रही हो।

और ऐसे ही एक दिन उसने मुझसे भी बोला की कोई भी मुझसे बात नई करता जल्दी तो मुझे काही और की वैकनसी का पता नहीं लग पाता। उसने ये जोर देते हुए कहा की सब पता नहीं कौन से ईगो मे रहते है की कुछ बताते ही नहीं।

यह सारी बातें सुन कर ही मेरे दिमाग मे यह खयाल आया की “कोई तमसे बात क्यूँ करेगा”?

मैंने सोचा की आपको इस लयाक बनना पड़ता है की लोग आपसे बात करे और आपके बारे में बात करे। इस कहानी का मकसद मुझे अपने कलीग को नीचा दिखाना या असम्मान करना नहीं है बल्कि, इस कहानी का मकसद सेल्फ- रेयलीजेसन (self-realisation) और सेल्फ-रीफ़लेक्सन (self –reflection)।

Motivational Story: कोई तुमसे बात क्यूँ करेगा?
Motivational Story: कोई तुमसे बात क्यूँ करेगा?

मेरे सीनियर की बातों से उसे तो पता नहीं, पर मुझे काफी ज्यादा सेल्फ- रेयलीजेसन (self-realisation) और सेल्फ-रीफ़लेक्सन (self –reflection) हो गया। उसकी बातों मे मुझे खुद से पर्दा दिखाया। मैं सोचने लग गई की जो लोग मुझसे बात करते है वो मेरे बारे मे क्या सोचते है।

इसके अलावा जिस चीज ने मेरे ध्यान को एकत्रित किया वो चीज थी की जो लोग मुझसे बात नहीं करते, आखिर वो मेरे बारे में क्या सोचते है। मैं इस बात से काफी दिनों तक परेशान थी, मैं सोचती रही उन लोगों के बारे में, जो शायद मेरे बारे मे सोचना तो दूर, मेरा खयाल भी नहीं करते होंगे।

काफी दिन उलझन मे रहने के बाद, मुझे यह ज्ञात हुआ की, मैं गलत थी। जिनकी मैं फिक्र कर रही थी वो महेज एक बिन्दु जितना हिस्सा है इस दुनिया के लिए। शायद ऐसे काफी लोग होंगे जो उनको बारे मे नहीं सोचते होंगे। फिर मुझे क्यूँ उनकी वैलीडैशन (validation) की जरूरत है।

मुझे अपने गहन-चिंतन से यह ज्ञात हुआ की, कभी-कभी, जिनकी बारे मे सोच कर हम दुखी होते है, जिनसे हम वैलीडैशन (validation) की आस मे रहते है, वो दरअसल कोई नहीं है। दूसरी यह बात की जब आप खुद को वैलीडैशन देने लगोगे, तो लोग आपको खुद वैलीडैशन देंगे।

यह काफी छोटी सी बात है, पर काफी गहरी है।

इस कहानी से मेरा मकसद यह भी है आप भी एक बार ही सही, परंतु सेल्फ- रेयलीजेसन (self-realisation) और सेल्फ-रीफ़लेक्सन (self –reflection) की राह पर जरूर निकले। वो किसी भी मुद्दे पे हो सकती है। पर शायद उसके बाद आपको किसी की वैलीडैशन (validation) की जरूरत नहीं पड़ेगी।

खुश रहिए, मुसकुराते रहिए।

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