नई दिल्ली | 19 नवंबर: दिल्ली की सड़कों पर आजकल गाड़ियों की चहल-पहल कम और ड्राइवरों के नारों की गूंज ज्यादा सुनाई दे रही है। इंद्रप्रस्थ डिपो में ऐसा बवाल मचा कि सिटी बसें खड़ी-खड़ी सोचने लगीं, “अब कौन हमें घुमाएगा?”
“हम भी इंसान हैं!”
डीटीसी के ड्राइवर साहबान इस बार गंभीर हैं। उनका कहना है कि वे दिन-रात गाड़ियां दौड़ाते हैं, हर हॉर्न के साथ जनता का स्ट्रेस झेलते हैं और फिर भी वेतन में इतनी कंजूसी? यह तो सरासर “क्लच-गियर” का अपमान है!
डिपो बना रणभूमि
इंद्रप्रस्थ डिपो में माहौल ऐसा था मानो कोई नया रियलिटी शो शुरू हो गया हो। ड्राइवरों के हाथ में प्लेकार्ड थे, जिन पर लिखा था:
- “बस हमारा हक चाहिए!”
- “स्टेरिंग चलाया, अब सरकार चलाओ!”
डिपो में खड़ी बसें भी इस ड्रामा का मजा ले रही थीं। एक ने दूसरी से कहा, “आजकल इंसान भी ब्रेक मारने में इतना वक्त लगा रहा है!”
रिटायर्ड ड्राइवर का दर्द
डिपो के पास बैठे एक रिटायर्ड ड्राइवर, मास्टरजी, ने कहा, “हमारे टाइम में तो बस का ब्रेक ही हमारी सैलरी बढ़ा देता था। अब के लड़के बस नारे लगाते हैं।”
मास्टरजी को देखते ही भीड़ में से एक ड्राइवर चिल्लाया, “मास्टरजी, अब जमाना बदल गया है। अब ब्रेक मारने से पेट नहीं भरता!”
सरकार और जनता का हाल
इस हड़ताल का सबसे ज्यादा असर उन लोगों पर पड़ा, जो सोचते थे कि बस से सस्ता कुछ नहीं। अब उन्हें ऑटो, मेट्रो और पैदल चलने के विकल्पों पर विचार करना पड़ रहा है।
सरकार के लिए यह मामला ऐसा है जैसे स्टेरिंग पर खुद बैठना पड़े। अधिकारियों ने कहा, “हम बातचीत कर रहे हैं। कोशिश है कि ड्राइवर भाई फिर से सीट पर लौट आएं।”
ड्राइवरों की खास डिमांड
हड़ताल के बीच ड्राइवरों ने अपनी एक खास डिमांड भी रखी: “हर बस में मसाला चाय और हर ट्रिप पर फ्री समोसा चाहिए।”
दिल्ली का हाल
इस बीच दिल्ली के यात्री मजाक में कह रहे हैं, “अगर हड़ताल लंबी चली, तो हमें अपने खुद के पैरों को बस मानना पड़ेगा।”
अंत में, बसें खड़ी हैं, ड्राइवर नाराज हैं, और जनता परेशान है। लेकिन एक बात तय है: अगर वेतन नहीं बढ़ा, तो अगली बार दिल्ली की सड़कों पर बसों की जगह नारों का जाम लगेगा!
(ड्राइवरों की हड़ताल जारी है, और हमारे रिपोर्टर अभी भी इंद्रप्रस्थ डिपो में चाय की दुकान पर खड़े हैं।)