नई दिल्ली | 24 जुलाई: पुरानी दिल्ली मे स्थित चाँदनी चौक के गौरी शंकर मंदिर की अनेकों विशेषताएं है, यह मंदिर लगभग 800 साल से भी पुराना है मंदिर श्रद्घालुओं की आस्था का केंद्र है, वहीं इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में भी इसका अनूठा रहस्य मिलता है। यहां भगवान शिव का अर्द्घनारीश्वर रूप मिलता है। आगे पढ़िए इस मंदिर के रहस्य…
ऐसा माना जाता है कि पांच पीपल के पेड़ों के बीच स्थित भगवान भोलेनाथ भक्तों की हर इच्छा को पूरा करते हैं। प्रबंध समिति के अनुसार, जो 1909 से मंदिर की देखभाल कर रही है, यह मंदिर लगभग 800 साल पुराना है। वर्ष 1761 में, मराठा सैनिक आपा गंगाधर ने इस मंदिर का निर्माण कराया। आज भी, मंदिर की छत पर मौजूद पिरामिड के निचले हिस्से में उनका नाम देखा जा सकता है।
कई दशकों बाद, 1959 में सेठ जयपुरा ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। ऐसा कहा जाता है कि मराठा सैनिक युद्ध में घायल होकर इस मंदिर में आए थे और यहां उन्होंने भगवान भोलेनाथ की प्रार्थना की थी। इस मंदिर में भगवान शिव के अलावा मां पार्वती, गणेश और कार्तिकेय महाराज की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं। दूसरे राज्यों से भी श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं।
कई दशकों के बाद, सेठ जयपुरा ने 1959 में इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। कहा जाता है कि मराठा सैनिक युद्ध में घायल होकर इस मंदिर में पहुंचे थे। यहाँ उन्होंने भगवान भोलेनाथ की प्रार्थना की थी। मंदिर में भगवान शिव के साथ-साथ मां पार्वती, गणेश और कार्तिकेय महाराज की प्रतिमाएं भी विराजमान हैं। यहां दूसरे राज्यों से भी श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
श्रावण मास में कांवड़ियों को भोलेनाथ के साथ उनके पूरे परिवार के पूजन का सौभाग्य भी मिलता है। मंदिर से जुड़े जानकारों का दावा है कि भारत के इतिहास में शैव संप्रदाय की महत्वपूर्ण भूमिका रही है और यह मंदिर उसी संप्रदाय का प्रतीक है। पांच पीपल के पेड़ों के बीच स्थित शिवलिंग सैकड़ों वर्षों से विद्यमान है, जिसके ऊपर रखे चांदी के बर्तन से जल की बूंदें अभिषेक करती हैं।
गौरी और शिव की पूजा-अर्चना के लिए यहां सुबह 5 बजे से ही भक्तों की लंबी कतारें लग जाती हैं। सोमवार को भी यहां सुबह 5 बजे से शिवलिंग और गौरी शंकर का पूजन शुरू हो जाता है। पूरे श्रावण मास में यहां भक्तों की हजारों की संख्या में भीड़ उमड़ती है। यह मंदिर पुरानी दिल्ली के सबसे चर्चित और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।