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“रवि शर्मा का रहस्यमयी सफर: जुआ, पुलिस, और रेल की पटरी के बीच”

त्रि-नगर, दिल्ली | 27 नवंबर: रवि शर्मा, 23 साल का नौजवान, अपने इलाके में “फैंटेसी क्रिकेट के धुरंधर” के नाम से मशहूर था। 13 नवंबर की ठंडी शाम को, उसने अपने घरवालों को यह कहते हुए अलविदा कहा कि वह ज़रा बाहर “दोस्तों से मिलने” जा रहा है। पर घरवालों को अच्छी तरह पता था कि दोस्त, ताश और चाय की दुकान पर मंडरा रहे “सट्टेबाज गुरु” से मुलाकात होने वाली है।

रवि के घर से निकलने के बाद का घटनाक्रम ऐसा रहा जैसे किसी थ्रिलर फिल्म की स्क्रिप्ट हो। जब वह दो दिन तक घर नहीं लौटा, तो उसकी मां और बहन पहले तो आस-पड़ोस के अंकल-आंटी से पूछताछ में लग गईं। किसी ने कहा, “शायद वो अपनी गर्लफ्रेंड के साथ भाग गया होगा।” किसी ने गंभीरता से कहा, “पुलिस स्टेशन जाओ, मामला गड़बड़ लग रहा है।”

पुलिस का “न्यायिक” हास्य

जब परिवार वाले थाने पहुंचे, तो वहां पुलिसवालों ने ऐसा स्वागत किया जैसे वे किसी पिकनिक के लिए आए हों।
“क्या FIR लिखवाने आए हो? पहले ये बताओ, तुम्हारे घर का गैस सिलेंडर कितने दिन चलता है?” एक कांस्टेबल ने पूछा।
दूसरे ने कहा, “इतने जवान लड़के गायब होते रहते हैं। हमारा क्या? हो सकता है वह किसी लड़की के चक्कर में गायब हो।”

जब रवि की मां ने थोड़ा जोर दिया, तो मामला और गर्म हो गया।
“हम पर दबाव मत डालो, वरना तुम्हें ही अंदर कर देंगे,” थानेदार ने दहाड़ते हुए कहा। FIR? भूल जाओ, साहब के पास सर्दी की छुट्टियों के लिए पहले से ही लंबी फाइल पड़ी है।

रवि की आखिरी गाथा

फिर आया 24 नवंबर। ज़खीरा बस्ती के पास रेलवे लाइन के किनारे एक लाश मिली। पहचान करने पर पता चला कि वह रवि शर्मा की ही थी। पुलिस ने ऐसे चेहरे बनाए जैसे उन्होंने ही जेम्स बॉन्ड बनकर केस सुलझाया हो।
“देखो, लाश मिल गई। अब मामला खत्म। घर जाओ और आराम करो,” पुलिस ने आदेश दिया।

परिवार वाले अब सोच रहे हैं कि आखिर क्या हुआ?

  • क्या रवि ने जुए में इतना बड़ा दांव लगाया कि जिनके पैसे डूबे, उन्होंने उसे ठिकाने लगा दिया?
  • या फिर यह रेलवे लाइन के पास के चायवाले की कोई साजिश थी, जो अक्सर उधारी में चाय पिलाने से परेशान था?

त्रासदी में छुपी कॉमेडी

यह मामला जितना दुखद है, उतना ही हमारे सिस्टम के “कागजी शेरों” का मजाक उड़ाता है। FIR लिखवाने में जितनी ऊर्जा लगती है, उससे कम में शायद किसी का पीएचडी हो जाए।

रवि के मामले ने दिखाया कि जिंदगी जुए का खेल है। कभी आप जीतते हैं, कभी हारते हैं, और कभी रेल की पटरी पर कहानी खत्म हो जाती है।

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