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हादसों का शहर: दिल्ली की अनकही कहानी

नई दिल्ली | 21 नवंबर: दिल्ली, देश की राजधानी, आजकल हादसों का शहर बनता जा रहा है। इसका नया कारण आवारा मवेशी हैं, जो सड़क पर जाम लगाकर दिल्लीवालों के जीवन को “मू” कर रहे हैं। आवारा गायें और सांड, ट्रैफिक पुलिस से भी ज्यादा ट्रैफिक कंट्रोल कर रहे हैं। पर अफसोस, इनका तरीका ‘गौ-स्टाइल’ है: अचानक से सड़क पर अड़ जाना और “कहीं भी बैठ जाना।”

दिल्ली में चल रही अवैध डेरियों की कहानी किसी बॉलीवुड मसाला फिल्म से कम नहीं। मोहल्ले के कोने-कोने में डेरियां, जो दूध से ज्यादा गंदगी का उत्पादन कर रही हैं, रिहायशी इलाकों की नालियां जाम और लोगों का दिमाग खराब कर रही हैं। इन डेरियों के मालिक दूध दुहने के बाद पशुओं को ऐसे छोड़ देते हैं, जैसे उन्होंने किराए पर कोई गाड़ी पार्क की हो। नतीजा? सड़कों पर मवेशियों का “पैदल मोर्चा।”

इस “दुग्ध क्रांति” का एक और साइड इफेक्ट है—नालियों और सीवर का जाम। गाय-भैंस के गोबर का बहता “झरना” नालियों को नया आयाम दे रहा है। पानी और मूत्र का ऐसा ‘सहयोग’ शायद दुनिया में कहीं और नहीं देखा गया होगा।

इन हालातों की वजह भ्रष्टाचार है। अफसरों की मिलीभगत और नेताओं की उदासीनता ने इस समस्या को और गहरा दिया है। लेकिन इन कामचोर अधिकारियों को देखकर लगता है कि वे ‘ऑफिस वर्कआउट’ से ज्यादा ‘कुर्सी एक्सरसाइज’ में व्यस्त हैं।

जरूरत है कि अवैध डेरियों पर कार्रवाई तेज हो और यह सुनिश्चित किया जाए कि दूध देने वाले पशु सिर्फ दूध ही दें, सड़क पर हादसे नहीं। दिल्ली वालों का भी यही सवाल है, “गायें सड़कों पर हैं, नेता कहां?”

दिल्ली की सड़कों को हादसों से बचाने के लिए कड़ी निगरानी और ईमानदारी से काम करना होगा। वरना, यह शहर जल्द ही “मो-oooo” वाले हादसों का स्थायी अड्डा बन जाएगा।

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