सिंगापुर, ग्रेट्र | 16 दिसंबर: नए विश्व चैंपियन डी गुकेश का कहना है की “मैं अमीर होने के लिए शतरंज नहीं खेल रहा” गुकेश के लिए करोड़पति बनने का तमगा बहुत मायने रखता है लेकिन – वह भौतिक लाभ के लिए नहीं खेलते बल्कि इसका आनंद उठाने के लिए खेलते हैं और वह इस लगाव को तब से बरकरार रखने में कामयाब रहे हैं जब शतरंज बोर्ड उनके लिए सबसे अच्छा खिलौना हुआ करता था।
डोम्माराजू गुकेश का महज 18 साल की उम्र में शतरंज का विश्व चैंपियन बत्तना देश के लिए एक ऐसी शानदार उपलब्धि है, जो इसके पहले किसी भारतीय खिलाड़ी ने किसी भी अंतरराष्ट्रीय खेल में अर्जित नहीं की। गुकेश की यह उपलब्धि इसलिए अभूतपूर्व हो जाती है कि विश्वनाथन आनंद जब विश्व चैंपियन बने थे तो वह करीब 31 साल के थे। आनंद ने 2013 में जब अपना खिताब गंवाया, तब गुकेश ने शतंरज खेलना शुरू ही किया था। वह 2019 में 12 साल सात माह की आयु में दूसरे सबसे युवा ग्रैंडमास्टर बन गए थे। इसके चार साल के अंदर वह विश्व चैंपियन बन गए। यह किसी चमत्कार से कम नहीं। गुकेश जब ग्रैंडमास्टर नहीं बने थे, तभी उन्होंने कहा था कि मैं सबसे कम उम्र का शतरंज विश्व चैंपियन बनना चाहता हूं। आखिरकार सिंगापुर में उन्होंने यह कर दिखाया और अपने बचपन के सपने को साकार किया। उन्होंने चैंपियन बनने के लिए केवल सपने ही नहीं देखे, बल्कि उनकी पूर्ति के लिए निरंतर प्रयत्न भी किए। इसमें उनके माता-पिता का भी भरपूर योगदान रहा, जिन्होंने बेटे के सपने को पूरा करने के लिए जो कुछ संभव था, किया। एक समय तो डाक्टर पिता ने नौकरी भी छोड़ दी थी।
चेन्नई के 18 वर्षीय गुकेश अब 11.45 करोड़ रुपये अधिक अमीर हो गए हैं जो उन्हें फाइनल में चीन के – ‘डिंग लिरेन को हराने के लिए फिडे से पुरस्कार राशि के रूप में मिलेगा। – गुकेश के पिता रजनीकांत ने अपने – बेटे के साथ सर्किट पर जाने के लिए – ‘ईएनटी सर्जन’ के तौर पर अपना करियर छोड़ दिया जबकि उनकी मां पद्मकुमारी एक माइक्रोबायोलाजिस्ट हैं जो परिवार की एकमात्र कमाने
वाली बन गईं। यह पूछे जाने पर कि करोड़पति होना उनके लिए क्या मायने रखता है तो गुकेश ने एक साक्षात्कार के रूप में फिडे को बताया, ‘यह बहुत मायने रखता है। जब मैं शतरंज में आया तो हमें एक परिवार के रूप में कुछ, मुश्किल फैसले लेने पड़े। मेरे माता-पिता वित्तीय और भावनात्मक कठिनाइयों से गुजरे थे। अब, हम अधिक सहज हैं और मेरे माता-पिता को उन चीजों के बारे में सोचने की जरूरत नहीं है।’ उन्होंने कहा, ‘व्यक्तिगत रूप से मैं पैसे के लिए शतरंज नहीं खेलता।’ वह हमेशा याद रखने की कोशिश करते हैं कि जब पहला शतरंज बोर्ड मिला था तो उन्होंने यह खेल क्यों खेलना शुरू किया था।
गुकेश ने अपनी प्रतिभा का परिचय बचपन में ही दे दिया था, लेकिन उनका हालिया सफर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा। गुकेश डिंग लिरेन को चुनौती देने में इसलिए सक्षम हो सके, क्योंकि वह वर्ल्ड चेस चैंपियनशिप का टोरंटों में आयोजित आखिरी चेस टूर्नामेंट कैंडिडेट्स, तब जीतने में सफल रहे थे, जब इसके आसार कम दिख रहे थे। गुकेश कैंडिडेट्स टूर्नामेंट के लिए इसीलिए क्वालीफाई कर सके थे, क्योंकि पिछले साल दिसंबर में चेन्नई में सुपर ग्रैंडमास्टर टूर्नामेंट आयोजित किया गया था। यह टूर्नामेंट ही गुकेश कौ टोरंटो तक ले जाने में सहायक बना। शतरंज में भारतीय खिलाड़ियों की सफलता के लिए यह भी आवश्यक है कि देश में अंतराष्ट्रीय चेस टूर्नामेंट आयोजित होते रहे।
गुकेश ने विश्व चैंपियन का किताब जीतकर सिर्फ अपने माता- पिता का ही नहीं पूरे हिंदुस्तान का नाम रोशन किया है।
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