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गुकेश ने किया छोटी उम्र में बड़ा कमाल

गुकेश की सफलता की महत्ता

गुकेश ने किया छोटी उम्र में बड़ा कमाल

नई दिल्ली | 14 दिसंबर: डोम्माराजू गुकेश का महज 18 साल की उम्र में शतरंज का विश्व चैंपियन बत्तना देश के लिए एक ऐसी शानदार उपलब्धि है, जो इसके पहले किसी भारतीय खिलाड़ी ने किसी भी अंतरराष्ट्रीय खेल में अर्जित नहीं की। गुकेश की यह उपलब्धि इसलिए अभूतपूर्व हो जाती है कि विश्वनाथन आनंद जब विश्व चैंपियन बने थे तो वह करीब 31 साल के थे। आनंद ने 2013 में जब अपना खिताब गंवाया, तब गुकेश ने शतंरज खेलना शुरू ही किया था। वह 2019 में 12 साल सात माह की आयु में दूसरे सबसे युवा ग्रैंडमास्टर बन गए थे। इसके चार साल के अंदर वह विश्व चैंपियन बन गए। यह किसी चमत्कार से कम नहीं। गुकेश जब ग्रैंडमास्टर नहीं बने थे, तभी उन्होंने कहा था कि मैं सबसे कम उम्र का शतरंज विश्व चैंपियन बनना चाहता हूं। आखिरकार सिंगापुर में उन्होंने यह कर दिखाया और अपने बचपन के सपने को साकार किया। उन्होंने चैंपियन बनने के लिए केवल सपने ही नहीं देखे, बल्कि उनकी पूर्ति के लिए निरंतर प्रयत्न भी किए। इसमें उनके माता-पिता का भी भरपूर योगदान रहा, जिन्होंने बेटे के सपने को पूरा करने के लिए जो कुछ संभव था, किया। एक समय तो डाक्टर पिता ने नौकरी भी छोड़ दी थी।

गुकेश ने किया छोटी उम्र में बड़ा कमाल
गुकेश ने किया छोटी उम्र में बड़ा कमाल

गुकेश की सफलता की महत्ता इसलिए, कहीं अधिक है, क्योंकि उनके पहले विश्व में कोई भी इतनी कम उम्र में शतरंज का विश्व चैंपियन नहीं बना। उनके पहले गैरी कास्पारोव शतरंज के युवा विश्व चैंपियन थे। जब गैरी विश्व चैंपियन बने थे, तब उनकी उम्र 22 साल सात महीने थी। गुकेश ने इतिहास रच दिया। इसी कारण उनकी गिनती कम उम्र में करिश्मा करने वाले दुनिया भर के अन्य खिलाड़ियों से की जा रही है। गुकेश की सफलता ओलिंपिक में जेवलिन थ्रो में नीरज चोपड़ा के स्वर्ण पदक जीतने जैसी है। यहां यह ध्यान रहे कि जेवलिन थ्रो शतरंज के मुकाबले कम ही देशों में प्रचलित है। छोटी उम्र में बड़ा कमाल करने वाले गुकेश को पुरस्कार राशि के रूप में 1.35 मिलियन डालर यानी करीब 11.45 करोड़ रुपये मिलेंगे। सिंगापुर में आयोजित वल्डं चेस चैंपियनशिप की कुल पुरस्कार राशि 2.5 मिलियन डालर (21.2 करोड़ रुपये) थी। यह भारी भरकम राशि शतरंज की लोकप्रियता बयान करती है। भारत और विशेष रूप से उत्तर भारत में शतरंज भले ही उतना

लोकप्रिय खेल न हो, लेकिन यह फुटबाल के बाद दुनिया का दूसरा लोकप्रिय खेल है। यह करीब 200 देशों में खेला जाता है। चूंकि अब गुकेश के रूप में भारत के पासं सफलता की एक बड़ी गाथा है, इसलिए देश में इस खेल की लोकप्रियता बढ़ने के और अधिक आसार हैं। सक्सेस स्टोरी हर किसी और खासकर बच्चों एवं युवाओं को प्रेरणा प्रदान करती है। शतरंज के बारे में कहा जाता है कि इसका आविष्कार भारत में हुआ। हाल के समय में गुकेश, अर्जुन एरिगेसी, पी. हरिकृष्णा, आर. प्रगनानंद, विदित गुजराती आदि ने यह दिखाया है कि शतरंज फिर से भारत में जड़ें जमा रहा है। इसकी पुष्टि तब भी हुई थी, जब भारत ने हाल में शतरंज ओलिंपियाड में स्वर्ण पदक जीता था।

18 साल के गुकेश ने 32 साल के चीनी खिलाड़ी और गत चैंपियन डिंग लिरेन को 6.5 के मुकाबले 7.5 के स्कोर से हराया। हालांकि वह अपना पहला मुकाबला हार गए थे, लेकिन तीसरी बाजी वह अपने नाम करने में सफल रहे। इसके बाद दोनों ग्रैंडमास्टर्स ने सात मुकाबले ड्रा खेले। फिर 11वां मुकाबला गुकेश ने जीता। इसके बाद 12 वां मुकाबला चीनी ग्रैंडमास्टर ने जीत लिया। 13 वीं बाजी फिर ड्रा रही। 14 वीं ब्राजी गुकेश ने

शतरंज का विश्व चैंपियन बनकर गुकेश ने वह कर दिखाया है, जो इसके पहले दुनिया में किसी ने नहीं किया

जीतकर खिताब अपने नाम किया। यदि यह बाजी भी ड्रा रहती तो जीत का फैसला टाईब्रेकर से होता। बेस्ट आफ 14 फार्मेट में जीत हासिल करने वाले गुकेश तीसरे ग्रैंडमास्टर रहे। उनके पहले डिंग लिरेन और मैग्नस कार्लसन भी ऐसा कर चुके हैं। दोनों ग्रैंडमास्टर्स के बीच कांटे की टक्कर ने यह दिखाया कि चीनी खिलाड़ी को कमतर करके नहीं आंका जा सकता।

शतरंज के खेल में धैर्य और मानसिक दृढ़ता बहुत मायने रखती है और गुकेश ने यह साबित किया कि इतनी कम उम्र में वह मानसिक रूप से कहीं अधिक मजबूत हैं। यही मजबूती उनकी सफलता का कारण बनी। उनकी सफलता के पीछे

उनकी खुद की लगन और मेहनत तो रही ही, उनकी टीम का सपोर्ट भी रहा। पूर्व विश्व चैंपियन विश्वनाथन आनंद भले ही उनकी टीम का हिस्सा न हों, लेकिन वह अन्य भरतीय शतरंज खिलाड़ियों की तरह उनके भी प्रेरणास्रोत हैं। गुकेश विश्वनाथन आनंद की चेस अकादमी वेस्टब्रिज का हिस्सा रहे हैं और उन्होंने शतरंज के कई गुर उनसे भी सीखे हैं। जैसे आनंद की कामयाबी ने भारत में तमाम खिलाड़ियों को शतरंज में कुछ कर दिखाने के लिए प्रेरित किया, वैसे ही यह काम अब गुकेश भी करने वाले हैं और शायद कहीं अधिक प्रभावी ढंग से, क्योंकि उन्होंने वह हासिल किया, जो पहले किसी ने नहीं किया। गुकेश ने अपनी प्रतिभा का परिचय बचपन में ही दे दिया था, लेकिन उनका हालिया सफर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा। गुकेश डिंग लिरेन को चुनौती देने में इसलिए सक्षम हो सके, क्योंकि वह वर्ल्ड चेस चैंपियनशिप का टोरंटों में आयोजित आखिरी चेस टूर्नामेंट कैंडिडेट्स, तब जीतने में सफल रहे थे, जब इसके आसार कम दिख रहे थे। गुकेश कैंडिडेट्स टूर्नामेंट के लिए इसीलिए क्वालीफाई कर सके थे, क्योंकि पिछले साल दिसंबर में चेन्नई में सुपर ग्रैंडमास्टर टूर्नामेंट आयोजित किया गया था। यह टूर्नामेंट ही गुकेश कौ टोरंटो तक ले जाने में सहायक बना। शतरंज में भारतीय खिलाड़ियों की सफलता के लिए यह भी आवश्यक है कि देश में अंतराष्ट्रीय चेस टूर्नामेंट आयोजित होते रहे।

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